हम सब एक की सन्तान हैं
मौलाना अरशद मदानी ने कहा कि ओम और अल्लाह एक ही है। इस बात के विरोध में जैन साधु और दूसरे सदन से उठकर चले गए। हिंदू संतों ने इस का विरोध किया है।
मेरे विचार में विरोध की गुंजाइश कम ही है। ये सभी मानते हैं कि विश्व किसी एक द्वारा बनाया गया है और वह सार्वभौम सर्वशक्तिमान है।उस के एक होने में किसी को भी संदेह नहीं है। मौलाना थोड़ी गल्ती कर गये। ओम के स्थान पर ग्रह्म भी कह सकते थे। पर एक असंगति फिर भी रह जाये गी। ब्रह्म को निराकार माना गया है जब कि दूसरी ओर कहा गया है कि ईश्वर ने मनुष्य को अपने प्रतिबिम्ब के रूप में पैदा किया अर्थात ईश्वर को मनुष्य रूप दे दिया है जो भारतीय धर्मों की अवधारणा से मेल नहीं खाता। इसे छोड़ दें तो कहा जा सकता है कि ब्रह्म या ओम ही मूल तत्व है।
वास्तव में विवाद तब उत्पन्न होता है जब हम उस के संदेशवाहकों के बारे में बात करते हैं। जहाँ तक हिंदू धर्म का सवाल है, इस में ओम को पूर्ण माना गया है परंतु इस के साथ ये भी कहा गया है कि उस के विभिन्न रूप हैं। उस तक पहुॅंचने के तरीके अलग अलग है। श्री गीता में कहा गया —
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति । तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥ २१ ॥
जो भी जिंस भावना से मेरे किसी रूप को पूजता हैं, वे मुझ को प्राप्त होता है।
ऋषियों ने कहा है - एकं सत्य विप्रा बहुधा वदन्ति।
सत्य एक ही है, इस का वर्णन अलग अलग है। भारत के सभी सन्देश वाहकों ने इस पर बल दिया है। किसी का आग्रह नहीं है कि उस का मत अंतिम सत्य हैं अथवा वह अंतिम सन्देशवाहक है।
दूसरे धर्म वाले इस बात को नहीं मानते। उन का कहना है कि उन के संदेशवाहक ने जो संदेश दिया है। वहीं अंतिम सत्य है। और उस से हट कर कुछ भी कहना असत्य है, धर्म के विरुद्ध है। इसी कारण ईसाई मत का प्रचार करने के लिए आग्रह किया गया है। सभी को उस सत्य से अवगत कराना है। किसी भी प्रकार से, किसी भी तरीके से, सब को ईसाई धर्म में लाना है। उन का कहना है कि संदेशवाहक ने उन की ओर से, पूरी जनता की ओर से, उन के सभी पापों को अपने पर धारण कर अपना बलिदान दे दिया। और इस से उस को मानने वाले सभी दोषों से मुक्त हो गए। वे सभी अपने गुनाहों से मुक्त कर दिए गए। इसी कारण उन्हों ने उन पर, जो कि इस बार को नहीं मानते थे, अत्याचार किये। उन्हें यातना दी। उन को समूल नष्ट किया। अमेरिका में रेड इंडियन हो अथवा मेक्सिको में इनका या दूसरे साम्राज्यों के नागरिक, उन सभी को इस कारण मृत्युदंड दिया गया कि वे उस एक संदेशवाहक की बात को नहीं मानते थे। ओर न यह कि उस में विश्वास उन को बचा ले गा तािा अपराध मुक्त कर दे गा।
इसी प्रकार दूसरे धर्म में कहा गया है कि वह पूर्ण शक्तिमान उस धर्म को मानने वालों पर मेहरबान है। उन के सब कार्य पूरे करेगा। उन्हें सब दोषों से मुक्त कर दे गा। और उन्हें सब गुनाहों से माफी दे दी जाए गी। शर्त केवल ये है कि उस के संदेशवाहक को ही अंतिम संदेश वाहक माना जाए। और न केवल उसे अंतिम माना जाए, बल्कि उस के पूर्व के सभी संदेश वाहकों को तिलांजलि दे दी जाए। और जो इस बात को नहीं माने, उस का वध करना, उन पर अत्याार करना धार्मिक कृत्य हो गा।
हिंदू धर्म में अथवा भारत में उत्पन्न सभी धर्मों में इस बात पर जोर दिया गया कि उस सर्वशक्तिमान कां अंश सभी में है। और जो भी चाहे वह उसे पा सकता ह, उस के साथ एकाकार हो सकता है। उस के लिए उसे अपने चरित्र में स्वच्छता और सच्चाई लाना पड़ेगी। इस के अतिरिक्त और कोई शर्त नहीं रखी गई है। हाँ, यह अवश्य है कि मन की शांति पाने के लिए तथा उस एक की ओर अग्रसर होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना हो गा। मन में उस के प्रति प्रेम जगाना हो गा। अपना आचरण शुद्ध रखना हो गा। यह नियम उस की भलाई के लिए बनाया गया है। और इन नियमों मे अपनी अनुभूति के फलस्वरूप परिवर्तन भी किया जा सकता है, जब तक कि नियमों का लक्ष्य अपने को पवित्र बनाना रहता हो।
इन सब कारणों से ओम, अल्लाह, गाड, या खुदा मैं कोई भेद नहीं है। भेद है उन के संदेशवाहक के संदेश में। और उन के द्वारा उस संदेशवाहक के विचार को पूर्ण सत्य मारने का आग्रह। ये आग्रह ही हिंसा को जन्म देता है। ये आग्रह ही शोषण को जन्म देता है। ये आग्रह ही अन्य सभी को नीच मानने का आदेश देता है। ये आग्रह ही सभी को अपने ही गुट में येन केन प्रकारेण लाने का संदेश देता है। इन संदेशों को ही समाप्त किया जाए, तभी ही वैश्विक रूप से यह धर्म अपने उस पवित्र लक्ष्य को प्राप्त कर सकें गे।
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