शमा और परवाना
परवाना कयूं जलता है यह सोचने की है बात .
शमा से मोहब्बत के कारण या है उस के खिलफ
कहता है
मैं तो आशिक हूँ रात की स्याही का
शमा तो है पैग़ाम मेरी तबाही का
दिन को शमा जले तो मैं आता नहीं
खुद को रौशनी में कभी जलाता नहीं
अँधेरे को मिटाने की कोशिश होती है जब
उस वक़्त ही देख सकते हैं मुझे सब
भूल जाओ शमा से मेरी मोहब्बत की बात
रात को दिन मत बनाओ, रहने दो उसे रात
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