शिक्षा जगत से एक शखसीयत
- kewal sethi
- Feb 23, 2021
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शिक्षा जगत से एक शखसीयत
(पूर्व में राजनीतिक क्षेत्र से कुछ व्यक्तियों की जीवन यात्रा की झलकी पेश की गई थी। इस से हट कर शिक्षा जगत के एक व्यक्ति की कहानी प्रस्तुत है)
क्लार्क केर
(बरकले विश्वविद्यालय के अध्यक्ष 1958 - 1967)
फरवरी 2021
कलार्क केर का जन्म 1911 में अमरीका के पेनसिलवानिया राज्य में हुआ था। उन के पिता कृषक होने के साथ अध्यापक भी थे। उन की तीन बहनें थीं। उन की माता स्वयं अधिक पढ़ी लिखी नही थी पर उस ने निर्णय लिया कि जब तक चारों बच्चे महाविद्यालय में नहीं जाते तब तक वह पैसा बचाये गी। वह स्वयं तो यह नहीं देख पाईं क्योंकि जब कलार्क 12 वर्ष के थे तो उन का देहान्त हो गया पर चारों बच्चे महाविद्यालय अवश्य गये।
कलार्क को खेल कूद में कोई रुचि नहीं थी परन्तु वह वैसे ही कृषि सम्बन्धी कार्य में तथा अन्य में काफी व्यस्त रहते थे। माता के देहान्त के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और घर में काफी कशीदगी रहती थी। 1928 में वह स्वाथमो महाविद्यालय में प्रवेश पा गये। वहाॅं वह क्वेकर समुदाय के सम्पर्क में आये। क्वेकर प्रभाव में वह काफी स्वतन्त्र तबियत के हो गये। इस के साथ ही क्वेकर समुदाय के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लने से उन्हें भाषणकला का भी अभ्यास हो गया। कलार्क ने ग्रीक, लैटिन, जर्मन तथा फ्रैंच सीखी और बर्लिन विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की। प्रथम विश्व युद्ध में वह शॅंतिवादी थे परन्तु उन के पड़ोसी इस से नाराज़ रहते थे। क्वेकर समुदाय के प्रभाव के कारण शाॅंतिवाद उन के जीवन का अंग बन गया। इसी कारण वह द्वितीय महायद्ध में भी सैनिक कर्तव्य से अलग रहने के लिये पात्र रहे।
क्वेकर समुदाय के साथ उन्हों ने कई अभियानों में भाग लिया। उन्हों ने 1930 के आर्थिक संकट के समय गरीब अश्वेत बच्चों के लिये भोजन प्रदाय के कार्यक्रम में भी भाग लेना आरम्भ किया। इन सब से उन्हें उन की स्थिति के बारे में जानने का अवसर मिला। उन के स्वभाव में किसी समस्या के बारे में तटस्थ रह कर सोचना भी शामिल हो गया। इस का उन्हें अपने जीवन में बहुत लाभ हुआ। उन के गुणों में स्वतन्त्र विचार के साथ साथ आत्म निर्भरता, मेहनत, तथा सदा सीखते रहने की इच्छा भी थे। क्वेकर विचारधारा में इस बात पर बल दिया जाता है कि हर व्यक्ति में कोई न कोई अच्छाई छुपी रहती है। केवल इसे व्यक्त करने के लिये प्रोत्साहित करना पड़ता है। इस में यह भी निहित है कि हर समस्या का समाधान युक्ति सहित पाया जा सकता है। इन्हीं सब गुणों के कारण उन्हें महाविद्यालय के अंतिम वर्ष में ‘मैन विद सिल्वर टंग’ का खिताब दिया गया।
महाविद्यालय के पश्चात उन्हों ने स्टामफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर तथा बरकले विश्वविद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्राप्त की। उन का विषय अर्थशास्त्र था। विशेष रूप से श्रमिक समस्या का अध्ययन उन्हों ने किया। बरकले में केर के आगमन के कुुछ समय पश्चात कपास चुनने वालों की हड़ताल हुई जो काफी हिंसात्मक रही। कपास चुनने वाले गरीबी में अस्वास्थ्यकर हालात में कार्य करते थे। इस अन्दोलन के कारण कलार्क केर की रुचि इस में जागृत हुई तथा उन्हों ने श्रमिकों में सहकारिता तथा सहयोग का अध्ययन किया। इसी प्र्रकार की हड़तालों के कारण 1935 में राष्ट्रीय श्रमिक सम्बन्ध अधिनियम बनाया गया था। इस के पश्चात 1938 में काम के घण्टे तथा न्यूनतम वेतन सम्बन्धी अधिनियम पारित किया गया। इन्हीं के आधार पर कर्लाक केर का अनुसंधान केन्द्रित रहा। उल्लेखनीय है कि इन संघर्षेों में साम्यवादी काफी सक्रिय रहे। परन्तु आम लोगों की राय यह भी थी कि हिंसा में विश्वास के कारण साम्यवादी तरीका सही नहीं है।
1936 में तथा फिर 1939 के बीच कलार्क केर तथा उन की पत्नि केथराईन ने युरोप तथा रूस का सघन दौरा किया। वह तथा उन की पत्नि ने साईकल पर ही कई देशों का भ्रमण किया। इस बीच उन्हों ने 1300 पृष्ठ का अपना अनुसंधान लेख प्रस्तुत किया। 1939 में वह वाशिंगटन विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक बने और अपने क्वेकर आदर्शों के कारण सक्रिय युद्ध में भाग लेने से मुक्त रहे किन्तु उन्हों ने क्षेत्रीय युद्धकर्मिक बोर्ड में इस पूरे समय में कार्य किया। उन के स्वभाव के कारण इस कार्य में उन्हें अच्छी सफलता मिली क्योंकि वह श्रमिकों का सहयोग भी प्राप्त कर सके।
1945 में कलार्क बरकले लौट आये तथा औद्योगिक सम्बन्ध मण्डल के निदेशक बने। साथ ही वह व्यापार प्रबन्ध संस्थान में सहायक प्राध्यापक भी रहे।
1930 में श्री सप्राउल बरकले विशविद्यालय के अध्यक्ष नियुक्त हुये थे। वह बड़े उत्साही व्यक्ति थे। उन्हों ने ही बरकले को विश्वस्तरीय संस्था बना दिया। इस के साथ ही उन्हों ने लास एंजलस के विश्वविद्यालय कैम्पस को भी काफी ऊॅंचे स्तर पर पहुुॅंचा दिया। उन का कार्य करने का तरीका केन्द्रीयकृत था। 1949 में साम्यवादी अन्दोलन को रोकने के लिये उन्हों ने सभी निकाय सदस्यों के लिये एक नई शपथ लेने के लिये कहा जिस में दल के सदस्य न होने, अथवा ऐसे दलों का समर्थक न होने एवं हिंसा से दूर रहने की बात कही गई। निकाय में एक समूह ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर इस का विरोध किया। कलार्क भी उन के साथ ही थे। एक समिति का गठन हुआ जिस में कलार्क को अपेक्षाकृत कनिष्ठ होते हुये भी सदस्य बनाया गया। उन्हों ने ज़ोरदार शब्दों में शपथ का विरोध किया। सम्झौते में एक संशोधित शपथ पर सहमति हुई। इस के बावजूद 31 सदस्यों को पूर्व निर्धारित शपथ न लेने पर सेवाच्युत कर दिया गया। बाद में अदालत द्वारा उन को हटाने का निर्णय निरस्त कर दिया गया।
परन्तु इस ज़ोरदार समर्थन से उन्हें जो प्रसिद्धि मिली, उस के कारण उन्हें 1950 में बरकले विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। वह इस के प्रथम कुलपति थे। अध्यक्ष श्री सप्राउल केन्द्रीय सत्ता में विश्वास रखते थे इस कारण कलार्क केर को कुलपति होने के बावजूद अधिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। यहाॅं तक कि उन का नियमित कार्यालय भी नहीं था। कलार्क का ज़ोर विेकेन्द्रीकरण पर था। उन्हों ने आरम्भ किया, विद्यार्थियों के रहवास प्रबन्ध से। साथ साथ वह औद्योगिक सम्बन्धों पर लेखन भी करते रहे। उस समय इस बात को उन्हों ने महसूस किया कि केलेफोर्निया की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ने वाली है और उच्च शिक्षा का विस्तार करना आवश्यक हो गा। इस कारण विकेन्द्रीयकरण बहुत आवश्यक है। श्री स्प्राउल अपने अधिकार कम करने के लिये तैयार नहीं थे पर वह उस ओर थे जिस की साख पिछड़ने वाली थी। 1958 में उन के स्थान पर कलार्क को अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।
अध्यक्ष के नाते उन के समक्ष चार मुद्दे थे। एक तो पूरे कैलेफोर्निया राज्य को देखना था जो जनसंख्या की दृष्टि से विशाल क्षेत्र था; दूसरे जनसंख्या विस्फोट के लिये तैयारी करना थी; तीसरे कुशल प्रबन्ध के लिये विकेन्द्रीयकरण आवश्यक था; चौथे तीन चार नये विश्वविद्यालय कैम्पस स्थापित करने हों गे। उन्हों ने विभिन्न विश्वविद्यालय कैम्पस के कुलपतियों को अधिक अधिकार देने की दिशा में कदम उठाया। महाविद्यालयों में स्तर कायम किये गये। निचले स्तर के महाविद्यालय किसी भी छात्र को प्रवेश दे सकते थे। राज्य स्तरीय महाविद्यालय ऊपर के एक तिहाई छात्रों में से प्रवेश दें गे तथा स्नातक एवं स्नातकोत्र उपाधि प्रदान कर सकें गे। विश्वविद्यालय कैम्पस ऊपर के 12.5 प्रतिशत छात्रों में से ही प्रवेश दें गे। साथ ही व्यवसायिक उपाधि प्रदान करने का अधिकार केवल उन्हीं को हो गा। कुलपतियों के अधिकारों में वद्धि की गई तथा उन्हें प्रशासनिक निर्णय लेने का अधिकार दिया गया। इस का सभी हल्कों में स्वागत तो नहीं हुआ क्योंकि अपना अधिकार कम होने की प्रतिक्रिया का सामना करना होता है। बरकले जो अभी तक अकादमिक कार्य का केन्द्र था, अपने अधिकार क्षेत्र को कम होते देख कर चिन्तित था। परन्तु वह विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया रोक नहीं पाये।
यहाॅं पर कलार्क के प्रशासन सम्बन्धी प्रक्रिया का उल्लेख करना उचित हो गा। एक तो उन में परिश्रम करने की शक्ति असीम थी; वह हर प्रस्ताव को अच्छी तरह आत्मसात कर लेते थे; दूसरे उन की याददाश्त बहुत अच्छी थी तथा आॅंकड़े इत्यादि उन को याद रहते थे। परन्तु दूसरी ओर वह प्रत्यक्ष चर्चा में इतना विश्वास नहीं रखते थे। लिखित टीप पर वह अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया देते थे। उन क साथ बैठक करने में कठिनाई होती थीा। यदि कोई अन्य राय व्यक्त करता था तो वह मुद्दे को स्थगित देते थे तथा इस पर और कार्य कर इसे स्वीकृति योग्य बनाते थे। उन का विचार था कि हर मुद्दे पर राय लिखित में एवं स्पष्ट होना चाहिये।
बरकले में फ्री स्पीच मूुवमैण्ट साठ के दशक की विशेष घटना है। यह अन्दोलन साम्यवादी विचार धारा से प्रेरित था। इस अन्दोलन के नेता इस बारे मे ंसुनिश्चित नहीं धे कि अन्दोलन की दिशा क्या होना चाहिये तथा अंतिम लक्ष्य क्या है। वह अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता चाहते थे तथा मानव अधिकार के प्रति आस्था व्यक्त करते थे। नारी सशक्तिकरण भी एक मुद्दा था किन्तु अभी भी स्त्रियों को सहायक के रूप में ही देखा जाता था न कि बराबर के अधिकार सम्पन्न सदस्य के रूप में।
सितम्बर 1964 में छात्रों ने विश्वविद्यालय के बाहर एक स्थान पर अपना प्रदर्शन किया। यह क्षेत्र विश्वविद्यालय से बाहर था किन्तु विश्वविद्यालय ने निर्णय लिया कि विश्वविद्यालय में प्रवेश मार्ग होने के कारण विश्वविद्यालय के कानून वहाॅं लागू हों गे। केर का मत था कि यह कदम सही नहीं है जबकि कुलपति स्ट्रांग इस पर अड़े थे। विकेन्द्रीकरण की अपनी नीति के अनुरूप कलार्क ने कुलपति स्ट्रांग के इस विचार को निरस्त नहीं किया तथा यही इन की कमज़ोरी सिद्ध हुई। जब इस पर निर्णय छात्रों के पक्ष में नहीं हुआ तो छात्रों ने छात्र नेता मारियो सावियों के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के सप्राउल हाल पर कब्ज़ा कर लिया। यद्यपि शासी निकाय के सदस्य कलार्क केर से सहमत थे कि इस समस्या का शाॅंतिपूर्ण समाधान होना चाहिये किन्तु कुलपति स्ट्रांग इस के विरुद्ध थे। शासी निकाय कुछ कर पाता, इस से पूर्व राज्यपाल श्री ब्राउन ने भी अपना मत बदल लिया तथा छात्रों को बलपूर्वक हटाने का निर्णय लिया। 600 पुलिस अधिकारियों को विश्वविद्यालय की नियन्त्रण पुलिस की सहायता करने को कहा गया। शाॅंतिपूर्ण छात्रों को घसीट कर बाहर निकाला गया जिस में 12 घण्टे से अधिक समय लगा। इस कारण मीडिया को काफी मसाला मिल गया।
7 दिसम्बर 1964 को कलार्क केर ने 6000 छात्रों तथा अन्य को सम्बोधित करते हुये समस्या समाधान का आश्वासन दिया जिस का करतल ध्वनि से स्वागत किया गया। परन्तु जब छात्र नेता सावियो बोलने के लिये माईक की ओर बढ़ा तो दो पुलिस अधिकारियों ने उस पकड़ कर मंच से घसीट लिया। इस से सभा में अफरातफरी मच गई और कलार्क केर के प्रयास पर पानी फिर गया।
अगले दिन अकादमिक निकाय ने कलार्क केर के प्रस्ताव से भी अधिक उदार प्रस्ताव पारित किया पर यह एक तरह से कलार्क केर में अविश्वास प्रस्ताव था। इस से शासी निकाय को विश्वविद्यालय के कार्य में हस्तक्षेप का अवसर मिला। 2 जनवरी 1965 को कुलपति स्ट्रांग को हटा दिया गया तथा कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया गया जो छात्रों के विचारों का पक्षधर था। यह कदम भी कलार्क केर के विरुद्ध गया।
1967 में रीगन के कैलेर्फोनिया के राज्यपाल बनने पर कलार्क केर को अध्यक्ष पद से हटाया गया। उल्लेखनीय है कि कलाक्र केर कभी भी रीगन से अकेले भेंट के लिये नहीं गये। कलार्क केर के जाने के बाद ही यह महसूस किया गया कि विश्वविद्यालय ने एक असाधारण व्यक्ति को खो दिया है। 1986 में बरकले विश्वविद्यालय कैम्पस को उन के नाम से सुशोभित किया गया।
कलार्क केर का विश्वास था कि हर व्यक्ति में अच्छाई होती है तथा किसी भी समस्या का युक्तियुक्त तथा शाॅंतिपूर्ण समाधान हो सकता है जिस के प्रति वह जीवन भर दृढ़ रहे। वह सदैव विकेन्द्रीकरण के पक्ष में रहे यद्यपि इस के कारण ही उन्हें अन्त में विपरीत स्थिति का समाना करना पड़ा। वास्तव में उन्हों ने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता देने के लिये विश्वविद्यालयों के कई सिद्धाॅंतों में फेरबदल किया पर सम्भवतः यह समय से पूर्व था।
(based on a portrait in the publication "portraits in leadership" by arthur padilla; publishers american council on education 2005)
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