top of page

लालू जीत गये

  • kewal sethi
  • Aug 19, 2020
  • 2 min read

लालू जीत गये


और - लालू जीत गये।

अखबारों, टी वी, रेडियो सभी से आई आवाज़

लालू जीत गये जनता का विश्वास,

मित्रों ने कहा बधाई देने का अवसर है

और कुछ खिलाओ हमें मिठाई

कुछ टिप्पणी भी दे डालो

नहीं तो कहें गे रस्म नहीं निभाई

बधाई - हाॅं बधाई तो देना ही चाहिये

निभाना ही है यह शिष्टाचार

पर बधाई का पात्र कौन है असली हकदार

ज़रूरी है करना इस पर विचार

खोजता रहा बधाई के मुख्य पात्र को

जनता क्या? या हमारे प्रजातान्त्रिक सिद्धाॅॅंत

प्रिय लालू भाई या हमारे मतों से जीते

ये सब हमारे प्रतिनिधि महान

छोटी बुद्धि के कारण तय नहीं कर पाया

इन में कोई अपने मन को न भाया

पर निभाना ज़रूरी था शिष्टाचार

तभी मन में आया यह विचार

मैं भी तो मतदाता हूॅं, दिया मैं ने भी वोट

खुद को ही बधाई दूॅं, नहीं इस में कोई खोट

इस लिये बधाई का पात्र अपने को मान

सब दोस्तों में कर दिया इस का अहलान

जब मैं ही पात्र तो अब समस्या यह आई

दोस्तों ने कहा कि खिलाओं मिठाई

अब पूरी है यह ज़िम्मेदारी तुम्हारी

राम ने रावण पर विजय पाई थी

असुरों की कर दी विदाई थी

सब जनता ने दशहरा था मनाया

बल्कि आज तक यह पर्व चला आया

नहीं यह पसंद तो खेलों का तरीका अपनाओ

फौरन स्काच की बोतल एक मंगाओ

धर्म संकट में मैं पड़ा और जेब थी खाली

क्यों बैठे बिठाये यह मुसीबत बुला ली

पत्नि बोली इतनी सी बात पर इतनी सोच

जल्दी से सिद्धाॅंतों का दो तुम गला घोंट

हलवा बनाती हूॅं, सब को खिलाओ

और भी तृप्त तुम भी तृप्त हो जाओं

फौरन अपनाई पत्नि की राय थी वह ठेठ

हलवा खाया और खिलाया सब को भरपेट

पर बात खत्म नहीं हुई यहाॅं पर क्या बतलायें

मित्रों ने कहा टिप्पणी तो रह गई, दो अपनी राय

दिमाग की टयूब लाईट मुश्किल से जला पाये हम

स्टार्टर खराब, चोक पुराना, वोल्टेज भी थी कम

सोचा अभी तक गणित में एक और एक होते थे दो

यहाॅं पर कैसे किस प्रकार हो गये मिल कर सौ

शून्य से गुणा करने पर शून्य होता था जवाब

पर यहाॅं तो उलटी गंगा उलटा हुआ हिसाब

लगता है सामान्य परिस्थियों में लागू होते हैं यह सिद्धाॅंत

राजनीति की भाषा अलग अपना ही इस का निज़ाम

क्यों इस में पुराने ही सिद्धाॅंतों को मान

होते रहें हम कुंठित, होते रहे हैरान

मनु, गाॅंधी के सिद्धाॅंतों का क्या, इक्कीसवीं सदी में आओ

जिस की लाठी, उस की भैंस, यह सिद्धाॅंत अपनाओ,

तभी पत्नि ने झझकोरा क्यों व्यर्थ की बातों में खोये हो

वैसे भी सुनता है कौन तुम्हारी, जो मदहोश हुए हो

जो आयें विचार मन में तुरन्त लिख डालो

मत दिमाग पर इतना ज़ोर तुम डालो

यह सब बड़ी बड़ी अकल वालों के है काम

टी वी पर जो आ जाये, उन का ही होता नाम

अपने पास थोड़ी बहुत है उसे रखो बचा कर

वक्त पर काम में लेना नष्ट करो मत यहाॅं पर

सो पत्नि का कहना मान कर टिप्पणी दी है टाल

कर रहा हूॅं, करता रहूॅं गा सही समय का इंतज़ार

किसी दिन दूॅं गा मैं अर्थ भरा कोई पैगाम

कहें कक्कू कवि अभी तो देता हूॅं वाणी को विश्राम


Recent Posts

See All
दिल्ली की दलदल

दिल्ली की दलदल बहुत दिन से बेकरारी थी कब हो गे चुनाव दिल्ली में इंतज़ार लगाये बैठे थे सब दलों के नेता दिल्ली में कुछ दल इतने उतवाले थे चुन...

 
 
 
अदालती जॉंच

अदालती जॉंच आईयेे सुनिये एक वक्त की कहानी चिरनवीन है गो है यह काफी पुरानी किसी शहर में लोग सरकार से नारज़ हो गये वजह जो भी रही हो आमादा...

 
 
 
the agenda is clear as a day

just when i said rahul has matured, he made the statement "the fight is about whether a sikh is going to be allowed to wear his turban in...

 
 
 

Comments


bottom of page