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नेकी कर दरिया में डाल

  • kewal sethi
  • Oct 11, 2024
  • 2 min read

नेकी कर दरिया में डाल


यह कहानी कई स्तर से गुज़र कर आप के पास आ रही है। एक पुराना खेल था कि एक व्यक्ति एक बात किसी के कान में कहता। वह व्यक्ति किसी और के कान में वही बात कहता है। इस श्रृंखला के अन्त वाला जब बताता है कि उस ने क्या सुना तो वह मूल बात से बिल्कुल अलग होती है। शायद इस कहानी में भी ऐसा हो। पर अच्छी है। इस लिये पेश है।

यह कहानी मैं ने एक पुस्तक में पढ़ी है। लेखक का कहाना है कि यह कहानी उसे एक व्यक्ति ने मुम्बई हवाई अड्डे पर बताई थी। उस के पास कुछ सामान था जिस पर कस्टम डयूटी देना थी। रकम मामूली सी थी पर उस के पास नकद पैसे थे नहीं और ट्रैवलर चैक कस्टम वाला ले नहीं रहा था। तो उस व्यक्ति ने उस की रकम चुका दी थी। जब लेखक ने उस का पता पूछा ताकि वह पैसा लौटा सके तो उस ने यह कहानी सुनाई।

उस व्यक्ति को यह कहानी उस के पिता ने सुनाई थी। उस के पिता दिल्ली में सरकारी नौकरी में थे। वह उस समय गृह मन्त्रालय में नियुक्त थे और उन को यह कहानी श्री व्ही पी मैनन ने सुनाई थी जो उस विभाग में सचिव पद पर थे।

वही व्ही पी मैनन जो सरदार पटेल के सचिव थे और जिन की भूमिका राज्यों का विलय भारत में कराने में काफी उत्कृष्ठ है।

पर व्ही पी मैनन की अपनी कहानी है। उन के पास न आक्सफोर्ड की डिग्री थी, न ही कैम्ब्रिज की। उन का परिवार भी ऐसा नहीं था जो उन्हें सचिव पद दिलवा सकता जैसे कि आजकल परिवारवाद के कारण होता है।

श्री व्ही पी मैनन बारह बच्चों में सब से बड़े थे। साधारण परिवार था तथा उन्हें तेरह वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ना पड़ा। उन्हों ने मज़दूरी की। कोयले की खदान में काम किया। एक कारखाने में भी रहे। कुछ देर व्यापार भी किया और फिर एक शाला में अध्यापक बन गये। उस के बाद शासकीय सेवा की तलाश में दिल्ली आ गये। रेलवे स्टेशन पर ही उन का सारा सामान चोरी हो गया। उन का पहचानपत्र भी उसी में था और पैसे भी।

ऐसे में उन्हों ने अपनी कहानी एक बुज़र्ग सरदार जी को सुनाई। सरदार जी ने उसे पंद्रह रुपये दिये। जब श्री मैनन ने उन का पता पूछा ताकि वह पैसा वापस कर सकें तो सरदार जी ने कहा कि वह जब किसी अजनबी को ऐसी ही मुसीबत में देखें तो यह पैसा उस को दे दें। वही ऋण की भरपाई हो गी।

उस के बाद मैनन अपने काम की बदौलत तरक्की करते रहे तथा सचिव भारत सरकार के पद से सेवानिवृत हुये परन्तु उन्हों ने कभी इस ऋण को नहीं भुलाया। आखिरी समय में भी उन्हों ने एक व्यक्ति को जिस के पास जूते नहीं थे, मदद की (यह बात उन की बेटी ने बताई थी पर यह कहानी का हिस्सा कैसे बनी, यह स्पष्ट नहीं है)।

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