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kewal sethi

नया वर्ष

नया वर्ष


वैसे तो यह कविता वर्ष बानवे के लिये लिखी गई थी पर आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। देखिये।


हाँ साल बानवे भी चला गया

जाना ही था

कौन सदा रह पाया है

कौन सदा रह पाये गा

आने वाला इक रोज़ तो जाये गा

लेकिन उस के जाने पर यह खुशी का इज़हार क्यों

कर्फ्यू के साये में पटाखे छोड़ने पर इसरार क्यों

साल बानवे ने तो कुछ किया नहीं

उस ने किसी से कुछ लिया नहीं

न उस ने किसी की पीठ में छुरा घोंपा

न किसी का घर आग में झोंका

न किसी को दी उस ने सज़ा

न किसी को इनाम से नवाज़ा

हर शख्स अपने ही अम्माल से उठा

हर व्यक्ति अपने कर्मो का ही फल भोगता

वर्ष को कोई भी जि़म्मेदारी देना फ़ज़ूल है

अपने मन में झाँकना ही सच्चा असूल है


साल त्रियानवे की आमद पर देता हूँ यह दुआ

अपने आप से गुफ्तगू का मिले आप को मौका

वरना साल क्या सदियाँ जायें गी गुज़र

पहचान सके गा खुद को कोई बशर


(1.1.93)

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