तबादलों की बाढ़
दिल्ली में एक सज्जन बोले अब भोपाल का क्या हाल है
सुना है वहाँ पर बाढ़ ने ग़ज़ब कर दिया इस साल है
हम ने सोचा इन को यह दिलचस्पी क्यों हुई भोपाल में
माना हम ने एक तिहाई लोगों का मुख्यालय बदल दिया है
पर यह तो है हमारी पुरानी रस्म इस में नया धरा क्या है
तबादला करना कराना ही हमारे राजनैतिज्ञों का धन्धा है
मोटी है इस में रोज़ी, यही तो उन का सालाना चंदा है
अब तक तो सारी दुनिया यह बात पूरी तरह मान चुकी है
तबादला उद्योग ही मध्य प्रदेश की सब से बड़ी इण्डस्ट्री है
फिर क्यों आज यह परदेसी इस तरह का सवाल उठाते हैं
लगता है रहते हैं हिन्दुस्तान से बाहर, कभी कभी आते है।
सो हम ने उन से पूछा आप को किस तरह है बाढ़ का पता
कहने लगे मियाँ अजीब आदमी हो, अखबारों में था छपा
कहने को तुम रहते हो इतने साल से भोपाल में
पर वहाँ की इतनी बड़ी बात भी नहीं रहती ख्याल में
लगता है तुम चालीस की उम्र में ही सठिया गये हो
इस लिये भोपाल के बारे में इस तरह हम से पूछते हो
अरे जब जुलाई मास में ही साल से दुगनी वर्षा हो जाये गी
तो क्या भोपाल में बाढ़ से भी बढ़ कर प्रलय न हो जाये गी
तब हमें ख्याल आया कि इन का मतलब आखिर क्या है
बात कर रहे हैं यह किस की आखिर माजरा क्या है
वेव लैन्थ अब तक दोनों की जुदा जुदा थी
यह ज़मीन पर थे हमारी नज़र आसमान पर थी
कहें कक्कू कवि बात साबित हो गई यह बिल आखिर
सोच का दायरा हो जाता है महदूद अपनी ही रुचि की बात पर
(अगस्त 1980 दिल्ली)
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