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किस्मत

  • kewal sethi
  • Nov 24, 2020
  • 1 min read

किस्मत


बहुत साल पहले की बात है मैं ने बस पकड़ी

बैठने की जगह न थी, भीड़ थी इतनी तकड़ी

एक सज्जन ने खिसक कर थोड़ी जगह बनाई

बैठने को कहा तो उस की तरफ नज़र दौड़ाई

वह तो अपना पुराना यार था कालिज का जमाती

अक्सर पैदल ही वापस आया करते थे हम साथी

नाम था सशील और खूब अच्छी मुलाकात थी

मैं रहता था ईस्ट में, उस की साउथ में रिहायश थी

बातें पुरानी होने लगी उस वक्त की जब साथ थे

क्या क्या मुस्तकबिल के बारे हमारे वह ख्वाब थे

मगर फिर किस्मत नें कुछ ऐसा मोड़ लिया

हालात ऐसे बने, उस ने कालिज छोड़ दिया

मिले थे आज कई दिनों के बाद, बातें करने पुरानी

उस ने अपनी बात सुनाई, हम ने अपनी कहानी

फिर हाल की सूरत पर होने लगा था तबसरा

दोनों ने बताया अपने अपने दफतर का किस्सा

मंज़िल जब आ गई तो हम बस से गये उतर

फिर मोड़ आया जहाॅं जाना था हम को बिछड़

जाते जाते उस ने किया हम से यह सवाल

तैयारी कर रहे थे आई ए एस क्या हुआ हाल

वह टैक्नीशियन हस्पताल में, मैं हुआ थोड़ा उदास

झेंप कर कहा मैं ने कि हो गया था उस में पास

मुबारक दी उस ने और खुशी भी जतलाई

कहें कक्कू कवि किस्मत दोस्ती के आड़े न आई



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