top of page

ऊॅची दुकान फीका पकवान

  • kewal sethi
  • Aug 17, 2020
  • 1 min read

ऊॅची दुकान फीका पकवान


ए मेरे दस के नोट तू मेरे काम आ न सका

मैं ने पीना चाही थी चाय वह भी पिला न सका

पान खाना चाहा लेकिन

पान वाला तुझे देख कर घबरा गया

क्योंकि लम्बे चैड़े भाषण

ऊॅंचे ऊॅंचे व्यक्तव्य

बहला तो सकते हैं

फुसला भी लेते हैं

पर

भूख प्यास नहीं मिटा सकते

(नवम्बर 1970 - उस समय सिक्कों की कमी हो गई थी। कोई भी दुकानदार बिना सिक्के लिये कुछ देना नहीं चाहता था। नोट और फिर दस का नोट तो टूट ही नहीं सकता था। वैसे आज कल के माहौल में पाॅंच सौ का नोट कहना शायद उपयुक्त होगा। )


Recent Posts

See All
दिल्ली की दलदल

दिल्ली की दलदल बहुत दिन से बेकरारी थी कब हो गे चुनाव दिल्ली में इंतज़ार लगाये बैठे थे सब दलों के नेता दिल्ली में कुछ दल इतने उतवाले थे चुन...

 
 
 
अदालती जॉंच

अदालती जॉंच आईयेे सुनिये एक वक्त की कहानी चिरनवीन है गो है यह काफी पुरानी किसी शहर में लोग सरकार से नारज़ हो गये वजह जो भी रही हो आमादा...

 
 
 
the agenda is clear as a day

just when i said rahul has matured, he made the statement "the fight is about whether a sikh is going to be allowed to wear his turban in...

 
 
 

Comments


bottom of page