अदालती जॉंच
आईयेे सुनिये एक वक्त की कहानी
चिरनवीन है गो है यह काफी पुरानी
किसी शहर में लोग सरकार से नारज़ हो गये
वजह जो भी रही हो आमादा फसाद हो गये
शहर बन्द का एहलान उन्हों ने कर दिया जब
डर के मारे सब दुकानें धड़ाधड़ होने लगी बन्द
जो रह गई्र खुली उन्हें जनता ने लूट लिया
कुछ सामान ले गये कुछ उन्हों ने फूॅंक दिया
क्या सरकार भी कहीं चुप बैठ सकती है ऐसे में
सब धाराओं का इस्तेमाल करने से कब हिचकते
इधर से जब पत्थर चेले, उधर से हुआ लाठी चार्ज
बिगड़ते ही गये इस तरह से नगर के हालात
अन्दोलन में कुछ घायल हुये जब पुलिस वाले
गोली बारी की मैजिस्ट्रेट ने आर्डर थे दे डाले
अखबारो में शोर मचा नेताओं के ब्यानों का
राजनैतिक दल ने कहा करें गे घेराव थानों का
उधर विधान सभा का इजलास सर पर था
लगा सरकार को उस में जाने क्या हो गा
फौरन अदालती जॉंच का एहलान कर दिया
हाई्र कोर्ट का जज करे गा घटना का फैसला
कुछ शॉंत हुआ शहर तो कुछ राहत हुई
चीफ जस्टिस से तब खतो खताबत हुई
चीफ जस्टिस ने जज का नाम सुझा दिया
शासन ने भी तुरन्त प्रैस नोट में बता दिया
जज साहब ने ज़ाहिर कर दी रज़ामन्दी अपनी
अब बारी थी उन के लिये दफतर की तलाशी
इधर उधर अफसरों ने डूॅंढा अच्छा सा स्थान
जहॉं माहौल ठीक हो, हो सके माकूल इंतज़ाम
बोर्ड्र आफिस का होस्टल अफसरों को भा गया
एक हाल तीन कमरे सब कुछ ही तो था वहॉं
फिर कौन हो स्टैनो ग्राफर, कौन रीडर,पता लगाया
और नाम उन को माननीय जज को भिजवाया
जब जज साहब ने अपनी मंज़ूरी भेज दी उन की
तब उपकरणों के लिये सरकार ने तलाश शुरु की
उस में तो सरकार को नहीं थी कोई परेशानी
पर जज महोदय ने तभी एक अड़चन लगा दी
दिल के कमज़ोर थे, ब्लड प्रैशर भी काफी हाई था
जो कमरा था उन का वह पहली मंजिल पर था।
लिफट थी न कोई वहॉं, भला कैसे ऊपर जायें गे
थक गये इस में तो कैसे वह कोर्ट्र लगायें गे
सीढ़ी पर चढ़ना तो उन के लिये मुहाल था
ऐसे में क्या किया जाये यह सवाल था
पुरानी रवाईत है पर जहॉं चाह, वहॉं राह,
अफसरों के लिये इस मुश्किल का हल डूॅंढा
लिफट की नहीं जगह तो वहॉं रैम्प बनायें गे
इस तरह जज महोदय को ऊपर पहुॅंचाये गे
चार छह महीने लगे पर सब हो गया तैयार
भेजी गई खबर अब तो बहुत हो गया इंतज़ार
जज महोदय ने कहा रुकिये, खबर भिजवाई
मेरे से न हो सके गा यह काम, हेै कठिनाई
है बोझ काम का बहुत इस कोर्ट में मेरे लिये
सी जे को कहा है कुछ और प्रबन्ध कीजिये
परन्तु सी जे तो मसरूफ थे अपने काम में
सरकार ने भी की प्रतीक्षा बड़े आराम से
छह सात महीने बीत गये थे सब शॉंत था
जनता भी भूल गई थी कि क्या बवाल था
विरोधी पक्ष को मिल गया था नया मयाला
जिस से सरकार को मुश्किल में जाये डाला
मत पुछिये हम से कि आगे क्या कहानी थी
कहें कक्कू कवि बस रैम्प ही निशानी थी
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