कोविड
चीन से शरू हो कर युरोप अमरीका का चक्कर लगा कर
कोविड आखिर भारत में आया उसे अपना निषाना बना कर
न जाने कौन सी बीमारी है जो फैल रही है यूॅं बे तहाशा
न दवा इस की, न इलाज कोई इस का, अजब है तमाशा
पढत़े थे रोज़ अख्बारो में इतने आ गये इस की ज़द में
किस स्टेट ने पा लिया काबू, कौन भुगत रहे अभी तक इसे
कभी घर जाते हुये मजबूर मज़दूरों की कहानी थी हर सू छाई
कभी सिकुड़ती हुई इकानोमी की परेशानी से जनता घबराई
सुनते थे, कवितायें लिखते थे, कुछ दर्द भरी कुछ व्यंगात्मक
पर घबराहट हो रही है जब घर के सामने दी इस ने दस्तक
परसों से इस की खबर आ रही है कानों कान थी सब बात
पर कल तो पुलिस वाला बाकायदा हो गया वहाॅं पर तैनात
कोविड हाटस्पाट का बोर्ड भी चस्पाॅं कर दिया इस गेट पर
तुर्रा यह कि पचास एक इश्तहार भी लटका दिये इधर उधर
न जाने कब सड़क पार कर इधर भी आ जाये यह नामुराद
घर से निकलना भी तो अब तो लगता है जी का जंजाल
आया, अब आया वैक्सीन, इस का ही शोर है चारों अतराफ
पर तब तक कौन जाने भारत के, विश्व के क्या हों गे हालात
वैक्सीन नहीं हे, दवा नहीं, न है इस में किसी अपने का सहारा
कहें कक्कू कवि सिर्फ दुआ पर ही मनुहसर है जीवन हमारा
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